Wednesday, December 16, 2009

मेरी सजा




सिकायत करूँ किससे तेरी बेबफाई का ,
जब तक़दीर ही बेबफा है ,
रुसबाइयां तो मेरे नसीब में थी ,
बस तकलीफ ही मेरी सजा है |

गुस्ताख ये दिल मेरा जिसकी दिल्लगी का ,
गुल ये सुहाना खिला है ,
काँटों भरी ज़िन्दगी मिली मुझको ,
बस तन्हाईयाँ ही मेरी सजा है |

विरानो से पूछता हूँ पता उसका ,
हर तरफ सन्नाटा नज़र आता है ,
आँखे थक गई रहो में अब ,
बस इंतजार ही मेरी सजा है |

बता दे राज कोई उस नींद का ,
जो महबूबा का दीदार करता है ,
मै डूबा करता था उसकी यादो में ,
बस अब ख़वाब ही मेरी सजा है |

ये खेल था दिल तोड़ने का ,
और बाज़ी भी आपने ही जीता है ,
किस्मत भी मुह मोर गई अब तो ,
बस उम्मीद ही मेरी सजा है |

बहाना ढूंढ़ लिया जीने का ,
ये दीवाना अब गजल लिखता है ,
हर लम्हा कागज पर उतारूँ ,
बस कलम ही मेरी सजा है |

2 comments:

  1. Hey
    very good manish, all poems are very good
    Please post your peoms at my site, All the best you 'll go high in poems world

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  2. kya ji kab se poet ban gaye hai maine aaj apka poem pada........it is really good.......

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