Saturday, November 28, 2009

कोई उलझा हुआ सवाल हूँ मै

कोई उलझा हुआ सवाल हूँ मै ,  
जो पूरी ना हुई वो ख्याल हूँ मै |

सागर में भी रह कर पानी को तरसा , 
ऐसा तो प्यासा बेहाल हूँ मै |

सूरज के साथ हूँ पर रौशनी को तरशा ,  
बादल के संग हूँ और फिर भी ना बरसा |

मत आने दो मुझको ख्यालो में ,  
खुद को उलझाओ ना अनसुलझे सवाल में |

दीपक बन कर चाहता हूँ जलना ,  
कदम तो मिला दो संग चाहता हूँ चलना ,
चाहता हूँ मै भी जीवन के रंग को भरना |

चाहो अगर तो रंगीन कर दो ,
 सतरंगी रंगों को सजा के ,  
प्यार से दामन को चाहता हूँ भरना ,
  बिखरे है अरमान ! खली है दामन |

सावन की बुँदे जलाये मेरा मन ,  
डूब कर तन्हाइयो में खो जाता हूँ मै|

बेचनी सी होती है जब ,
 सपनो से बाहर आता हूँ मै |

कोई उलझा हुआ सवाल हूँ मै , 
जो पूरी ना हुई वो ख्याल हूँ मै |

कोई अरमान का जाल हूँ मै, 
 आपके एहसाश का ख्याल हूँ मै |

ख्यालो में आऊं तो समझो ना सपना , 
कब बन जाऊँ सपनो से अपना |

आपके एहसाश में हूँ ,
  आपके ख्यालो में हूँ मै |

टुटा हुआ आसमा से तारा के ज़ेशा , 
जुड़ ना पाया टूट कर मै टुटा येशा |

कोई अरमान सजे थे पलकों पर मेरे , 
आज जेशे सजते है पलकों पर तेरे |

किसी
अरमान का जाल हूँ मै ,
 आपके एहसाश का ख्याल हूँ मै |

टूटे है जेशे मोती के धागे , 
वेशे ही टूटी मेरी चाहत के वादे , 
बिखरा – बिखरा सा अधुरा सा हूँ मै |

आज भी पलके नमी सी रहती है मरी , 
इस बिखरेपन में भी पुरा सा हूँ मै |

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